मेरा छोटा सा क़स्बा
बन गया है, अब शहर
घराट ,जहाँ पिसता था
मेरी माँ के हाथ से छाना
और धुला गेंहूँ
अब वहां ,सुलभ शौचालय है
बन गया है, अब शहर
घराट ,जहाँ पिसता था
मेरी माँ के हाथ से छाना
और धुला गेंहूँ
अब वहां ,सुलभ शौचालय है
मस्तराम हलवाई अब
माला पहने दीवार में टंगा है
काले से शीशे के पीछे
मैं उसे पहचान लेता हूँ
अब थालियों में नहीं है
कलाकंद ,इमरती,रबडी
और न घेवर जलेबी
कोई भट्ठी नहीं है
हाँ अब है ,,मोमो
थोपो नुडल पिजा बर्गर
शहर की नालियाँ खुश हैं
अपनी अमीरी से, और
ढेर कूड़े का भी प्रफ्फुल्लित है
सैर करता है ट्रेक्टर में
शीतल हवा जो बहती थी
आज लोग रुमाल से
मुहं ढक के चलते हैं
हवा अब भी बहती है
मगर ,जहरीली है
गंगा में रोज नहाने वाले
अब गंगा का आचमन से
डरते हैं ,हाइजीनिक हैं
गंगा गन्दी हो गई
माँ बूड़ी हो गई
लोग दोनों से कतराते हैं
और सरकार कहती है
गाँव शहर बन गया
लोग हर जगह नाक पर रूमाल रख कर चलते हैं . गंगा जल को प्रदूषित होने के कारण नहीं पीते।
जवाब देंहटाएंइस के लिए दोषी कौन है अमरीका या पाकिस्तान ?
हम अपना दोष नहीं देखते ...
जब गंगा में अध् जले मुर्दे बहाते हैं ,
साबुन लगा लगा कर नहाते हैं .
अपने घर का सारा कूड़ा "गंगा मैय्या " को अर्पित करते हैं .
सारा सीवर सिस्टम गंगा में ही खुलता है .
फिर दोष किसका है .
हम सिर्फ गंगा को माँ कहते हैं क्योंकि हम बुजुर्गों से ये संबोधन सुनते आये हैं .
हमारी न इस के प्रति कोई श्रद्धा है न कोई भावना .
जाओ देखो उन पच्छिमी देशों में : जहां हम सिर्फ पैसा कमाने जाते हैं .
वोह आज भी अपनी नदी और झीलों को शीशे की तरह साफ़ रखते हैं .
हाँ उन को माँ -बाप का दर्ज़ा दे कर ढकोसला नहीं करते .