रविवार, 5 जून 2011

पड़ोसन ,...

पड़ोसन ,...
भाभी जी ,कहाँ हो
अरे ,कितने दिन से
सोच रही हूँ ,आपसे नहीं मिली
क्या करूँ ,मेरी सास
ठीक ,दरवाजे पर बैठी होती है
कहीं जाओ ,वही सवाल
कहाँ जाती हो
अभी अस्पताल गयी है
तब आई हूँ
अच्छा ,भाभीजी आपकी सास
नजर नहीं आ रही
अच्छा,हाँ वो सर्दियों में
दिल्ली चली जाती हैं

यहाँ उफ़ ,मत पूछो
जेठ जेठानी दोनों नौकरी वाले
कभी उनके पास भी जाना चाहिए
सास मगर नहीं जाती
और कहती है
यहीं रहूंगी गंगा माई के पास
पता नहीं क्या रखा है
गंगा माई में ,लोग भी
तो रहते हैं बाहर
पिछले साल गई थी
अपने भाई के घर
इनके छोटे मामा की शादी में
यहाँ से एक महीने में
दो बार गंगाजल दस दस लीटर
भिजवाया था वो भी कोरियर से

ओहो ,मैं भी क्या कह रही हूँ
सवेरे से, पहले ननद को
चाय बना कर दी
ट्यूशन ,जाती है चाय पीकर
फिर ,सास को चाय दी
फिर देवर को नाश्ता
हाय ,सवेरे से कमर
टूट जाती है
अरे भूल गई, भाभी जी,
अपनी वो साडी देदो फिरोजी वाली
बेटी का फैंसी ड्रेस शो है
मेरी सभी साड़ियाँ
अभी ड्राई क्लीन कराई हैं

अच्छा ,अन्दर कौन है
भाई साहब हैं,.. अभी गए नहीं
और देखो मैं भी पागलों की तरह
क्या क्या बोल गई
सुना तो, नहीं होगा
भाई साहब ने
कहीं, भाई साहब इनसे न कह दें
हाय राम, मुझे पता नहीं चला
इनको पता चला तो
यह तो अपनी माँ की
जरा सी बात सुन नहीं पाते
मेरा जीना हराम कर देंगे
अच्छा ,भाभी जी चलती हूँ
सास ,आ गयी होगी अस्पताल से
और साडी,, बेटी को भेजूंगी
उसे ही दे देना

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