कितने मेरे मुख हैं
मैं न जान सका
क्या वही हूँ ,जो सुबह
डांटता था भंगार वाले को
कम तोलता है ,अखबार
पांच किलो को एक में
बराबर करता है
बॉस के सामने
खड़ा है चुपचाप
डरता, बॉस की
मुस्कान को तरसता
बॉस के जूते पर
गिरे चाय या काफी
उसका रुमाल बैचेन
साफ़ करने को
चपरासी को यूँ देखता है
जैसे बॉस सवेरे देखता उसको
रोंब गांठता है ,पानी के लिए
चाय के लिए और झल्लाता है
देरी के लिए ,बस मौका चाहिए
ससुराल में बन जाता है
मिनिस्टर का दोस्त
वह भी बचपन का
शहर के कोतवाल को
बताता है पक्का याड़ी
प्रेमिका के सामने
सताया हुआ पति है
मगर प्यारा है
जालिम है बीबी
सताती है हरदम
घर में एक स्वाभिमानी
ईमानदार पति पमेश्वर है
रिश्वत नहीं लेता
जेब में कोई जबरदस्ती
डाल गया एक पेकेट
क्या करे बेचारा
शर्म से निकल भी न सका
आदर्श बाप है
सच्चा, आदर्शवादी
मगर ये राम जैसा
क्यों नहीं लगता
बच्चा सोचता है
मगर !!!!!!!!!!
बाप अब शायद
ऐसे ही होते होंगे
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