शुक्रवार, 3 जून 2011

मंजिल करीब है

सुबह उजाले थे खड़े
इस इंतजार में
तू कदम बड़ा
सूरज भी लाया प्रकाश
तेरे साथ न हो कारवां
बिना फिकर, तू कदम उठा
आगे बढ़ ,क्यों देर
तेरे हौंसले हैं बुलंद
तो मंजिल कहाँ दूर
बहने दे हवाओं को
बन कर आंधी
ये तूफान,
कुछ कर न पायेंगे

भले ही विशाल हो
कितना भी सागर
तेरी छोटी हो नाव
डाल दे सागर में
तेरे इरादों की पतवार
सागरों को बौना कर देंगी

तू खोज मुसीबतें
निपट और आगे बढ़
मुहँ छिपाना तेरा काम नहीं
देख ,इससे पहले
सूरज तपे ,दुनिया चले
तू चल ,और सिर्फ चल
तेरे चलने से
मंजिल करीब है

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