मंगलवार, 7 जून 2011

कुछ कलियाँ खिलती नहीं

मैं तो सोचता था जो जालिम हैं
वो रुलाते हैं ,फिर ये शब्द क्या हैं
जो मेरी आँखों में आंसू लाते हैं

बूंदों ने समुद्र से बगावत कर ली उड़ गए
बन कर बादल हिमालय पर बरसने को

सदा कोई तुम्हारा साथ देदे
मुमकिन नहीं और
तुम भी जीते हो जिंदगी
अपने ढंग से ,
जियो ,,,खूब जियो
लेकिन दिन के उत्पात
और ,शतरंजी चालें
अब जाओ भूल
वक्त वक्त की बात है
अब रात है ,
फिर सुबह होगी
करो इंतजार
दिन में तुम्हारे साथ था
लेकिन अब अपने
एकांत से मिलाओ हाथ
बहुत थके हो .बस अब


मेरे पहाड़ ऊँचे हैं
यहाँ चढ़ते ही बादलों को
आता है पसीना
और टपकते हैं
बूंदें बन कर


तेरी चाहते क्या हैं
तुझे खुद नहीं मालूम
तेरे डब्बे में
केरोसिन होना चाहिए
बस ,,,,,,,,,

तुम्हारी याद कब नहीं आती ,जाती ही नहीं
तब भी नहीं जब मैं खुद को भी भूल जाता हूँ

तुम चलो तो ,बढ़ो तो ,उठो तो
यकीन करो, वक्त पिछड़ जाएगा

तेरी कामयाबियां तेरे मुकद्दर का बयां करती हैं
तू जागा था,इसलिए ,,उठ अब औरों को जगा


उसके घर, रौशनी
छन कर आती जाली से
उसने बंद कर दिए
सभी दरवाजे खिड़कियाँ
और रोशनदान
उजालों से परहेज है
शायद आँखों में
मोतिया है

फ़िक्र क्यों करता ही ,दूर है वो
चाँद भी तो दूर है ,जिसमे उसे
देखता है ,दांत में ऊँगली दबाकर

कौन कहता चिरागों की उम्र हुआ करती है
ये मिट्टी से बना करते हैं, टूटते हैं, जरुर
मगर जवां हुआ करते हैं, कितने भी हों पुराने
अँधेरे इनसे डरते हैं ये रोशन हुए जब भी ,

सुबह, वह लोगों के हाथ में मुक्कदर पढता था
शाम जवान बेटे की नौकरी के लिए भटकता है

जब चारों और कांटे हों और सामने हो गहरा कुआँ
रास्ता भी वहीँ होगा ,ऐसे में कूदना मत कुँए में
जला दे तू काँटों को ,वो देख सामने है रास्ता

मोती खोजने को समंदर की गहराई नापना ज़रूरी नही
किनारे पर भी अगर मिल जाए हीरे, तो मोती छोड़ दो


तू अब भी किसी करिश्मे का कर रहा इंतजार
क्या तेरे जिगर में लहू नही या उसमे गर्मी नही
कोई आएगा फरिश्ता कहीं से तेरी राहों में ज़रूर
बैठा रहेगा, यूँ ही तेरे कदम भी तो उठने चाहिए


तेरी ऑंखें बताती हैं
तू सोना चाहता है
अरे वह "सोना" गहने वाला नहीं
उससे तो नींद का है
उल्टा रिश्ता है
वह है,तो फिर सोना कैसे
वह नहीं है ,तो फिर जागना क्यों
भाई मैं क्या जानूं,
किसी के पास क्या है, क्या नहीं
अपने को तो नींद आ रही है

उन हदों को छू आया हूँ
जहाँ आसमान बाकी था
वह गिरता कैसे
अभी नीचे मैं खड़ा था

शिखंडियों आड़ में
जीते हुए युद्ध
या अभिमन्यु का
घायल विक्षिप्त शव
प्रश्न पूछता है
कौन सा है "धर्म युद्ध"

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