हाँ ,यही प्रेम है,,,,,,,,,,
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सवालों का क्या,
उठाओ पर ,,
तुम कह दोगे तो
मान हम लेंगे
ये,,, ,तुम ये सच्चा प्रेम
क्या कहते हो
प्रेम झूठा भी होता है,?
क्या कहते हो
प्रकाश में अँधेरा ,?
नहीं ,ऐसा नहीं है
कोई कोई,, अँधा भी होता है
अब अंधों का क्या, दिन
और क्या रात,
लोग अंधे होते हैं
खुद टकराते है
इल्जाम प्रेम को देते हैं
ये नहीं मुनासिब
ये नादाँ है,
जुबाँ गर है, खामोश
तो क्या फांसी चडा दोगे
इल्जाम क्या है, इस पर
सिर्फ खामोश है
मधुर है सुवासित है
कलियों की मुस्कराहट है
खुशबु है फूलों में जैसे
हाँ ,यही प्रेम है
धोखा मत खा लेना
फूल अगर कागज के हों
तो फूल नकली हैं
ये इल्जाम प्रेम को न दो
फूल झूठा है ,खुशबू नहीं
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