अंगूठे एकलव्य के कटेंगे
दुशासन के हाथ क्यों नहीं कटते
क्यों निगाहें जमीन पर
स्थिर हैं, पांडव की
बीबी का मान,एक पति
या, पांच पतियों में
बँट जाता है ,या बढता है
शेखियां बघारो भीम,
गदा क्या गिरवी है, तुम्हारी
युधिष्टर तुम क्यों मौन
धर्मराज ,कौन सा राज
न्याय करोगे स्त्री को
दांव पर लगाओगे
खुद को क्यों न लगाया
अर्जुन की प्रत्यंचा क्यों क्षीण
लौटा दो, एकलव्य का अंगूठा
तुम रख न पाए,
एकलव्य का मान
तुम पांच मर्द हो
फिर क्यों पुकारती केशव को
खुले केश द्रौपदी ,
तुम्हारा गर्व समझती है
जंघा गर तोड़ दी दुर्योधन की
द्रौपदी के प्रश्न वहीँ खड़े हैं
जानती है ,शेखियां क्या हैं
जानती है भली भांति
तुम्हारी मर्दानगी
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