गुरुवार, 9 जून 2011

आओ कबीर फिर से ,,,,,,,,,,,,,***

तू मिल जाये तो
बस, और क्या चाहूँ
मेरी ख्वाहिशें
कुछ भी नहीं हैं
सिर्फ तू ही है
मगर तू अपना पता तो
बता दे ,खोजता हूँ
तेरा ठिकाना

अपना ईमेल ही बतादे

तू है कहीं मुझे यकीं है
अब तो बच्चों की भी आईडी है
तू, तो फिर तू ही है
बदल गई है, प्रार्थना
अब कबीर भी नहीं जानता
अब DJ  का जमाना है
बांग और पाहन नहीं

अब तो मंदिरों में
इन्सान बैठे हैं खुद
तेरा टिकट काट के
आओ कबीर फिर से
अब बदलो शब्द अपने
कैसे बदलोगे ,अनपढ़ हो
गंवार हो ,तुम्हे क्या आता है
तुम्हे क्या हक़ है कुछ कहने का
शुक्र है नहीं हो, होते आज
शायद काट दिए जाते

अब दिल की बात कहना

नाजायज है
नाजायज औलाद की तरह
दिल की बेकद्री है
फिर तुम्हारी बात अब न
सुनी जाएगी, तुम्हारा सच
अब लैब में टैस्ट होगा
जरुरी है, सैम्पल फेल ही होगा
तुम PHD  नहीं हो न

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें