शुक्रवार, 3 जून 2011

बचपन,,,,,,,,,,,


आज मुझे नींद
तू क्यों नहीं आती
तू कहाँ है मुझे
आज देखने हैं
फिर से बचपन के
प्यारे सपने

स्कूल से आकर
बस्ते को फैंकना
ड्रेस को किसी अछूत
बीमारी की तरह त्यागना

और दौड़ जाना सीधा ही
गंगा में नहाना ,
डुबकियाँ लगाना
तैरना फिर ठिठुरना
और किसी गरम बड़े से
पत्थर पर पेट के बल
लेट जाना

माँ और मोहल्ले की मौसियाँ
आती जब डंडा लेकर
नंगे ही भाग जाना

अपने खेल निराले से
गाँव के सीधे सादे से
कबड्डी ,गुल्ली डंडा
कंचे ,दिन के खेल
और रात को
पकड़म पकड़ाई
अन्ताक्षरी

देर से फिर
रात को मंदिर के बाग से
आम, कभी अमरुद तो
कभी कच्चे केले चुराना
बंदरों की तरह कुछ खाना
कुछ फैंक डालना

सुबह पुजारी की शिकायत पर
एक दम मुकर जाना
और कसम खाना
विद्या माता की
और पिता से पुजारी को
अच्छी सी डांट खिलाना

अपनी भोली सूरत से
पुजारी को देख मुस्कुराना
फिर मंदिर जाकर
पुजारी से प्रसाद लेना
और आशीर्वाद पाना

वाह बचपन तू कहाँ है
और बचपन से पूछा मैंने
वह चाहता है बड़ा होना

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