सोमवार, 4 जुलाई 2011

jivan shesh hai

नासा के वैज्ञानिक
अभी चंद रोज पहले
देखते मंगल को
और कहा शायद
मंगल में जीवन
पूरी संभावना है
मिले लक्षण विशेष

मंगल के नागरिक
झांकते धरती
और आपस में
फुसफुसाते
ताज्जुब अभी भी
इराक ,अफगानिस्तान
और कई इलाकों पर
जीवन अब भी शेष !!!

jindgi

जिन्दगी को यारों हल्का करो
बहुत हैं बोझ उठाया हुआ
खामखाह हर बात को
दिल पर लगाया न करो
नाजुक है दिल इसे रुलाया न करो
कोई रूठ जाए तो
तुम भी रूठ जाया न करो
आगे बड़ उन्हें मनाया करो और
वो मनाएं तो मान जाया करो
पता नहीं फिर कभी मिले न मिले
बस ऐसे मिलो किसी से
ख्यालों से फिर न जाया करो

dakiya

चिट्ठी लिखी हुई
किसी और की है
भाषा कुछ तल्ख़ हो
प्रेम भरी, या नरम,गरम
गुस्ताखियाँ ज़माने की हैं
डाकिये को दोष न दो

बिना परहेज चला जाता हूँ
कई बस्तियों में
सुनता हूँ कह देता हूँ
वही बात ,उनकी जुबान से

मैं तो बस डाकिया हूँ
पहुंचा देता हूँ
चिट्ठिया मुझे दोष न दो
बंद लिफाफे में होता है क्या
सुख दुःख ,या कुछ और
कथा है व्यथा नहीं जानता

मेरी अपनी कोई बात नहीं
मेरा धर्म है चिट्ठी बाँटना
बाँट देता हूँ ,पढो जो लिखा
ख़ुशी है इनाम मत दो
ग़मी है तो इल्जाम भी न दो

ram ki pooja

राम तुम्हारी
करता हूँ पूजा
माँ,ने कहा है,ऐसा
तुमने रावण को मारा
ताड़का को संहारा

वन को गए
आज्ञाकारी हो
राजपाठ त्यागा
तुम महान हो

मुझे तुम्हारा
दूसरा रूप ही भाता
तुम केवट को लगाते
प्रेम से गले
शबरी के झूठे बेर में
तुम्हे सच्चा प्रेम
दिख जाता ,,,

sundarta

***
खूबसूरती किसी की
मुस्कराहट में देखता हूँ
मुस्कुराता सांवला सा
कन्हैय्या ,,,,

नजर जब भी आती, वंशी
मुझे बांस भी सुन्दर
नजारा आता है

गुलाब जब मुस्कुराता है
मुझे चन्दन
दिखती है वो मिटटी
जहाँ वह उग आता है

तेरी पूजा तो न की कभी
लेकिन जो तेरी याद में
बहाए जो आंसू, मुझे वो
सुन्दर नजर आता है

hanso aur hansaao

हड्डियों की बात करो
कुत्तों की याद आती है
सड़े गले मांस से
ये कैसी बू आती है

खोलो दिमाग की
कुछ खिड़कियाँ
कचरा विचारों को
त्याग दो ,कि
पास खड़े लोगों को
सड़ांध आती है

कोई जानवर नहीं
ऐसा जो हँसता हो
ये सिर्फ आदमी है
जो कर सकता ऐसा
हंसो और हंसाओ
के जीने के लिए
दवा से ज्यादा
आक्सीजन जरुरी है

apna kaun

***
कौन रहा है अपना
ये शरीर भी बेवफा है
पता नहीं कहाँ
मार दे लंगड़ी
जो अभी तक
सिर्फ अपना है

लोग कहाँ हैं भरोसे के
सिर्फ साथ अपने
एक मधुर सपना है
ये जग भी सपना है
सपना भी अपना है
करो सपने से मुहब्बत
हर गम दूर करता है

टूटता है कई बार
फिर गम दूर करता
सब छूट जाते हैं
बस ये साथ रहता है

paheli

अनमोल सी पहेली
क्षितिज के पार
एक ऐसा जगत
पुकारता मुझे
मैं सुनती एक आहट
कोई पहचानता मुझे

मैं अजनबी रही वह
अपना सा था जैसे
मेरा एक सपना सा था
वह आहट कुछ जानी और
पहचानी सी थी
हाँ एक दिन इसी घर से
मुझे लाया गया

गुरुवार, 30 जून 2011

चलना जरुरी है

चलिए हम साथ चले हैं
मंजिल भले दूर हो
हम थके नहीं हैं
तुममे न हो गर ताकत
मेरे काँधे लो सहारा
तुम्हे ले चलूँगा वहां तक
चल सकूँगा जहाँ तक
मंजिल से पहले बैठूँगा नहीं
बीच सफ़र छोडूंगा भी नहीं
पहुँचने के लिए
चलना जरुरी है
मैं चलता हूँ चलता रहूँगा
मंजिल के लिए
यही है एक जरुरी शर्त

तेरी ,,,ख़ामोशी कहती है

मुहँ छिपाने से
आँख बंद कर लेने से
मुसीबतें टला नहीं करती
आँख खोल अक्सर तो ये
कई बार आँख मिलाते
डर जाती हैं

तेरी चुप्पी तुझे
कटघरे में ला देती है
तू भी तो हुंकार भर
देख और आजमा
कैसे लोग ऊँची आवाज में
झूठ को सच साबित करते है

सच ही बोल
अरे बोल तो सही
लोग मौन को अब
कहाँ समझते हैं
जोर से कह
देख ये तमाम
भौम्पू अपने झूठ को
सच साबित करते हैं

अब मौन से
काम न चलेगा
सच को सामने
लाना ही होगा
अब अन्धो को
चाँद दिखता नहीं
उन्हें ऊँची आवाज में
बताना होगा

ब्रह्मा जैसा है आदमी

कितने मेरे मुख हैं
मैं न जान सका
क्या वही हूँ ,जो सुबह
डांटता था भंगार वाले को
कम तोलता है ,अखबार
पांच किलो को एक में
बराबर करता है

बॉस के सामने
खड़ा है चुपचाप
डरता, बॉस की
मुस्कान को तरसता
बॉस के जूते पर
गिरे चाय या काफी
उसका रुमाल बैचेन
साफ़ करने को

चपरासी को यूँ देखता है
जैसे बॉस सवेरे देखता उसको
रोंब गांठता है ,पानी के लिए
चाय के लिए और झल्लाता है
देरी के लिए ,बस मौका चाहिए

ससुराल में बन जाता है
मिनिस्टर का दोस्त
वह भी बचपन का
शहर के कोतवाल को
बताता है पक्का याड़ी

प्रेमिका के सामने
सताया हुआ पति है
मगर प्यारा है
जालिम है बीबी
सताती है हरदम

घर में एक स्वाभिमानी
ईमानदार पति पमेश्वर है
रिश्वत नहीं लेता
जेब में कोई जबरदस्ती
डाल गया एक पेकेट
क्या करे बेचारा
शर्म से निकल भी न सका

आदर्श बाप है
सच्चा, आदर्शवादी
मगर ये राम जैसा
क्यों नहीं लगता
बच्चा सोचता है
मगर !!!!!!!!!!
बाप अब शायद
ऐसे ही होते होंगे

शुक्रवार, 17 जून 2011

चमकती हुई रोटी

परेशान हो या हैरान
बताओ मुझे
या करते हो परेशान
नौ दिन में चूक गए तुम
तुम्हारी परेशानी है
कि कुछ लुटेरे हैं
लूट रहे हैं ,क्या कर लोगे
जब सभी सोये हों
तुम्हारा काम था
तुम जगाते एक अलख
काम आसान हो जाता
पर तुम्हे नाम भी चाहिए

तुमने भूख नहीं देखी
बस अब देख ली न
अब समझो, उन्हें देखो
तुम पहले उनकी
समझो भूख
करो अब कुछ
रात को इस उम्मीद में
रोज रात को पथराई आँखों से
सिर्फ ख्वाब में देखते हैं
चमकती हुई रोटी
लोग अभी ऐसे भी है
इनकी ताकत नहीं
के उठा सकें कोई झंडा
डराता है इन्हें
अभी कोई डंडा

तू नहीं है, हकीकत ,,

***
अब भी तेरा मैं
क्यों करता हूँ इंतजार
मैं जान भी गया हूँ
तू नहीं है, हकीकत
है, सिर्फ ख्वाब
तू है कैसे मान लूँ
क्या तू है एक चाँद
नहाया तेरी चांदनी से
कई बार, पर तू 
आसमान पर और मैं
यहाँ तू आता नहीं यहाँ
चल इतना कर
मुझे ही बुला
तेरे बिना मैं कुछ नहीं
समझता है तू भी
फिर क्या है इंतजार
मैं अब खुद ही
मिटने को तैयार

सोमवार, 13 जून 2011

छत हुआ नहीं करती

पहेलियाँ बुझाने से
जिंदगी नहीं चला करती
पत्थरों की कोई
नाव नहीं हुआ करती
उठ चल कि बैठे बैठे
मंजिल मिला नहीं करती

कह दो उन शेरों को
अब जंगल में रहें
या चले आयें शहर
मौत की कोई जगह
तय हुआ नहीं करती
धुआं कहीं भी उठे
दिल की आग
दिखा नहीं करती

पौंच कर आंसू किसी के
कोई तुम्हे तसल्ली नहीं होती
अपने ही रंग से क्यों
रंगते हो दुनिया
क्या और रंगों में
तहजीब नहीं होती

अपनी आजादी कायम रहे
ये किसी पाबन्दी से
हासिल हुआ नहीं करती
कसमे न उठाओ झूठी
किताबों को रख हाथ
कद्र सच की कभी
घटा नहीं करती

बादलों गरजो या बरसो
फटा मत करो
कि गरीबों के सर
छत हुआ नहीं करती

रविवार, 12 जून 2011

अगर तू है,,,,,,

क्या करूँ
तेरी तस्वीर से
उलझ जाता हूँ
तू है,ये सच है
या, वहम है मेरा
अगर तू है
कभी तो मिल

तू क्यों सताता है
छलिया है, तू
ये छल अब
मुझसे न कर
मेरी कहाँ है
इतनी ताकत
मै सह न पाऊंगा
अब और ये सितम

तू आ अभी
नहीं तो क्या
जब मैं आऊंगा
एक दिन
तू नजरे न चुराएगा
आना तो मुझे होगा ही
पर रूठ जाऊँगा
मानूगा नहीं

खुद को जानने को

***,,
खुद को जानने को
मैं कहाँ कहाँ भटका
जरा अपने टूटे हुए
शीशे को न देखा
खंड खंड होता हुआ
बिखरी हुई तस्वीर
जोड़ने का साहस न हुआ
अमानत था एक ही था
जब तूने दिया ,
अब क्या करूँ
टूट गया ,कैसे हुआ
तुम जानते हो न
दिल ही तो है

गुरुवार, 9 जून 2011

आओ कबीर फिर से ,,,,,,,,,,,,,***

तू मिल जाये तो
बस, और क्या चाहूँ
मेरी ख्वाहिशें
कुछ भी नहीं हैं
सिर्फ तू ही है
मगर तू अपना पता तो
बता दे ,खोजता हूँ
तेरा ठिकाना

अपना ईमेल ही बतादे

तू है कहीं मुझे यकीं है
अब तो बच्चों की भी आईडी है
तू, तो फिर तू ही है
बदल गई है, प्रार्थना
अब कबीर भी नहीं जानता
अब DJ  का जमाना है
बांग और पाहन नहीं

अब तो मंदिरों में
इन्सान बैठे हैं खुद
तेरा टिकट काट के
आओ कबीर फिर से
अब बदलो शब्द अपने
कैसे बदलोगे ,अनपढ़ हो
गंवार हो ,तुम्हे क्या आता है
तुम्हे क्या हक़ है कुछ कहने का
शुक्र है नहीं हो, होते आज
शायद काट दिए जाते

अब दिल की बात कहना

नाजायज है
नाजायज औलाद की तरह
दिल की बेकद्री है
फिर तुम्हारी बात अब न
सुनी जाएगी, तुम्हारा सच
अब लैब में टैस्ट होगा
जरुरी है, सैम्पल फेल ही होगा
तुम PHD  नहीं हो न

मुहब्बत

अब चलो न
क्या यहाँ है, ऐसा
अपनी दुनिया में
चलते हैं वापिस
यहाँ सब कुछ है
मुहब्बत नहीं है

बन्दे हैं खुदा के

मुहब्बत ही खुदा है
लोग कहते हैं
नुमाइंदे हैं खुदा के
खुदा के नाम पर
इंसाफ यूँ करते हैं
मुहब्बत को सलीब पर
टांग देते हैं
नहीं जानते वो
क्या करते है
नहीं जानते मुहब्बत
खुद ही खुदा है

खुदा के नाम पर

इंसाफ करता आदमी
काजी और पंडितो की
किताबों में कैद ,होता हुआ 
खुदा और भगवान
किस वहम में है,
ये आदमी
क्या खुद भगवान होता है
कभी आदमी

हाथ में लिए है तलवार जो

मुहब्बत के लहू से
उस पर लिख दी खुदाई
क़त्ल कर दिया है भगवान का
जालिम हो गया है आदमी

दिखता नहीं अब कहीं खुदा

और भगवान भी
मुहब्बत भरे दिल में
पड़ा रहता बेफिक्र सा
है तो घर खुदा का दिल में ही
फिर क्यों नहीं समझता हर आदमी



हाँ ,यही प्रेम है,,,,,,,,,,


***
सवालों का क्या,
उठाओ पर ,,
तुम कह दोगे तो
मान हम लेंगे
ये,,, ,तुम ये सच्चा प्रेम
क्या कहते हो
प्रेम झूठा भी होता है,?
क्या कहते हो
प्रकाश में अँधेरा ,?
नहीं ,ऐसा नहीं है
कोई कोई,, अँधा भी होता है

अब अंधों का क्या, दिन
और क्या रात,
लोग अंधे होते हैं
खुद टकराते है
इल्जाम प्रेम को देते हैं
ये नहीं मुनासिब
ये नादाँ है,
जुबाँ गर है, खामोश
तो क्या फांसी चडा दोगे
इल्जाम क्या है, इस पर
सिर्फ खामोश है

मधुर है सुवासित है
कलियों की मुस्कराहट है
खुशबु है फूलों में जैसे
हाँ ,यही प्रेम है
धोखा मत खा लेना
फूल अगर कागज के हों
तो फूल नकली हैं
ये इल्जाम प्रेम को न दो
फूल झूठा है ,खुशबू नहीं

पत्नी........[और संस्कार]


'नाश्ते में क्या लोगे '
'जो तुम्हारी मर्जी'
'पराठें बना दूँ ',पनीर वाले '
'हाँ बना दो '
'अरे नहीं ,डाक्टर ने मना किया है '
'सेंडविच बनाती हूँ '
......
सुनो ,दिन में क्या खाओगे
'कुछ भी बना दो ..'
'नहीं तुम बताओ ..'
'अच्छा .मूंग बना दो
'अरहर बना दूँ '
............
'बात सुनो,तुम्हारे लिए
ग्रे शर्ट ठीक है लेलें
हाँ ठीक है लेलो
भाई [दुकानदार से ] ऐसा करो
स्काई ब्लू शर्ट को पैक करदो

बुधवार, 8 जून 2011

तू अब पंगा न ले, अब राम से

रावण न तू मरता है
न राम पीछे हटते हैं
हर साल तू
फिर तन के खड़ा हो जाता है
फिर विभीषण तेरा राज
उगलते हैं
फिर तू धोखा खा जाता है
सुन ,इस साल तू
सीता को न चुराना
बस ,अपना सही पता बताना
देख ,तेरे लिए सीता से भी सुन्दर
कई बालाएं स्वयं आ जाएँगी
तेरा तो कोई स्विस बैंक भी नहीं है
जब की तू रावण है
सब कुछ तेरे पास है
बस ,अपनी लंका के फर्श की
कोई टूटी, स्वर्ण टाइल का टुकड़ा दे देना
पर तू अब पंगा न ले, अब राम से
मत गँवा अपनी लंका
बंधू ,मित्र , सखा और पुत्र ,पौत्र
अरे सुन ,यह राम तो जिद्दी है
वह नहीं मानेगा
कैकयी, की जिद के कारण,
वह फिर से वन को जायेगा
अगर वही सुन लेता तो
मैं उसको ही समझाता
कि,जिद न कर
तेरे वन न जाने से ,
दशरथ घुट घुट के न मरता
वह विलाप दृश्य 'रामलीला' में
तीन दिन न चलता
लक्ष्मण और उर्मिला का
विरह न होता


और ,भरत राजमहल में
सन्यासी न होता
अच्छा तू ही समझा दे उसे
कहीं मंथरा के कारण
अपना घर तोडना ठीक है
धोबी के कहने से सीता का त्याग
जरुरी है ,अरे तू ही कुछ कर
फिर तेरा तमाशा होगा
राम फिर तुझे जलाएगा
खुद मान, या उसको मना

तुम्हें तो कोई चिंता ही नहीं,,,,,,,,


अरे सुनो ,
आज तुम्हारी छुट्टी है
कुछ काम करो ,
छोड़ो अखबार
कभी अखबार ,
कभी टीवी बस
ऐसे ही पूरा दिन
गुजार दोगे
एक काम करो 
जाओ बाजार से
दही ला दो,कल होली है
भल्ले बना दूंगी ,और सुनो
दो किलो प्याज भी
मंडी से लेते आना
छांट के लाना ,तुम्हें तो
कोई भी ठग लेता है
तुम्हारा ध्यान,
पता नहीं कहाँ होता है
और प्याज के रेट
अब पंद्रह रुपये है
मांगता बीस है,
अच्छा और सुनो
सुनार की दुकान के बाहर
ठेली लगी है 
दो चिप्स और एक दो पैकेट
और कुछ भी ले लेना
होली है तुम्हारे भुक्कड़ दोस्त
वो भी तो आयेंगे,
हाँ टमाटर, तो में भूल ही गई
वो भी लाना थोडा टाईट वाले
आधा किलो 
देख लेना जरा ढंग से
एकाध तो गला हुआ डालते ही हैं
यह सब्जी वाले
चल दिए ,रुको रुको रुको
यह मेरी चप्पल
पोलिथीन में डाल देती हूँ
चौक में पेड़ के नीचे
मोची से टांका लगवा देना
और सुनो ,जरा जल्दी आना
मेहंदी घोलुंगी 
सिर पे लगा लेना
तुम्हें तो कोई 
चिंता ही नहीं
बस ऐसे ही बने रहते हो
तुमसे तो बस ,,,
गप्पें लगवा लो जी भर के
पूरे देश की चिंता तुम्ही को है
खड़े रहोगे ,जाओ भी अब

चूहा ही हूँ ,

चूहे ने कुतर दिए कुछ कपडे
कुछ आलू ,और ब्रेड
इसके अतिरिक्त कुछ और
मैंने पूछा ..जब तुझे
पूरा नही खाना था
जगह जगह दांत क्यों मारे
जितनी भूख है उतना ही खाले
यह सब क्यों कुतर डाला
चूहे ने मुझसे कहा
चूहा ही हूँ ,
कुतर ही सकता हूँ
निगलता तो नहीं
और रही भूख की बात -
यह तुम मुझे नहीं
उन्हें समझाओ न
जो पूरा देश निगल रहे हैं
अरे तुम आदमियों की
औसत उम्र सौ साल है
रोज एक हजार भी खर्च करो
तो ,तीन करोड़ पैंसठ लाख में
सौ साल के लिए काफी हैं
फिर यह हजारों करोड़
क्यों निगल डाले
यह सुन मैं चुप हो गया
अब समझा गणेश जी
समृद्धि के देवता क्यूँ हैं
उनके मंत्री ,कलमाड़ी
या कोई और नहीं हैं

प्रेम की गहराई,,,,,,,,,,

***
आकाश तू अब
बड़ा हो जा -
पंख प्रेम के मेरे
फ़ैल गए, आकाश में
हो जायेगा, तू छोटा -
उडान प्रेम की
भर ली है, मैंने

कहता है कौन
'फ़ालिंग इन लव'
गलत प्रमाणों को
किताबों में ही रहने दो
गलत पाठ न सिखाओ -
उठता है आदमी प्रेम में
भगवान होता हुआ

प्रेम को बदनाम
करता है कौन
सिवा इन्सान के-
दीवानी मीरा ,राधा
क्या कृष्ण को
न पा गयी -
जपी, तपी सब
रह गए, देखते

खरीदा, न गया
कभी मजनू
न कभी लैला बिकी
पत्थरों की बारिश
बन गई फूल
मजनू के लिए
प्रेम की गहराई
सागर जान न सका
खारा जल कोई
पी न सका -
बूंद एक ही
सींप की प्यास
तृप्त कर बनी मोती
अमृत की

मंगलवार, 7 जून 2011

कुछ कलियाँ खिलती नहीं

मैं तो सोचता था जो जालिम हैं
वो रुलाते हैं ,फिर ये शब्द क्या हैं
जो मेरी आँखों में आंसू लाते हैं

बूंदों ने समुद्र से बगावत कर ली उड़ गए
बन कर बादल हिमालय पर बरसने को

सदा कोई तुम्हारा साथ देदे
मुमकिन नहीं और
तुम भी जीते हो जिंदगी
अपने ढंग से ,
जियो ,,,खूब जियो
लेकिन दिन के उत्पात
और ,शतरंजी चालें
अब जाओ भूल
वक्त वक्त की बात है
अब रात है ,
फिर सुबह होगी
करो इंतजार
दिन में तुम्हारे साथ था
लेकिन अब अपने
एकांत से मिलाओ हाथ
बहुत थके हो .बस अब


मेरे पहाड़ ऊँचे हैं
यहाँ चढ़ते ही बादलों को
आता है पसीना
और टपकते हैं
बूंदें बन कर


तेरी चाहते क्या हैं
तुझे खुद नहीं मालूम
तेरे डब्बे में
केरोसिन होना चाहिए
बस ,,,,,,,,,

तुम्हारी याद कब नहीं आती ,जाती ही नहीं
तब भी नहीं जब मैं खुद को भी भूल जाता हूँ

तुम चलो तो ,बढ़ो तो ,उठो तो
यकीन करो, वक्त पिछड़ जाएगा

तेरी कामयाबियां तेरे मुकद्दर का बयां करती हैं
तू जागा था,इसलिए ,,उठ अब औरों को जगा


उसके घर, रौशनी
छन कर आती जाली से
उसने बंद कर दिए
सभी दरवाजे खिड़कियाँ
और रोशनदान
उजालों से परहेज है
शायद आँखों में
मोतिया है

फ़िक्र क्यों करता ही ,दूर है वो
चाँद भी तो दूर है ,जिसमे उसे
देखता है ,दांत में ऊँगली दबाकर

कौन कहता चिरागों की उम्र हुआ करती है
ये मिट्टी से बना करते हैं, टूटते हैं, जरुर
मगर जवां हुआ करते हैं, कितने भी हों पुराने
अँधेरे इनसे डरते हैं ये रोशन हुए जब भी ,

सुबह, वह लोगों के हाथ में मुक्कदर पढता था
शाम जवान बेटे की नौकरी के लिए भटकता है

जब चारों और कांटे हों और सामने हो गहरा कुआँ
रास्ता भी वहीँ होगा ,ऐसे में कूदना मत कुँए में
जला दे तू काँटों को ,वो देख सामने है रास्ता

मोती खोजने को समंदर की गहराई नापना ज़रूरी नही
किनारे पर भी अगर मिल जाए हीरे, तो मोती छोड़ दो


तू अब भी किसी करिश्मे का कर रहा इंतजार
क्या तेरे जिगर में लहू नही या उसमे गर्मी नही
कोई आएगा फरिश्ता कहीं से तेरी राहों में ज़रूर
बैठा रहेगा, यूँ ही तेरे कदम भी तो उठने चाहिए


तेरी ऑंखें बताती हैं
तू सोना चाहता है
अरे वह "सोना" गहने वाला नहीं
उससे तो नींद का है
उल्टा रिश्ता है
वह है,तो फिर सोना कैसे
वह नहीं है ,तो फिर जागना क्यों
भाई मैं क्या जानूं,
किसी के पास क्या है, क्या नहीं
अपने को तो नींद आ रही है

उन हदों को छू आया हूँ
जहाँ आसमान बाकी था
वह गिरता कैसे
अभी नीचे मैं खड़ा था

शिखंडियों आड़ में
जीते हुए युद्ध
या अभिमन्यु का
घायल विक्षिप्त शव
प्रश्न पूछता है
कौन सा है "धर्म युद्ध"

ओसामा और ओबामा क्या नाम से भाई जैसे नहीं लगते,

ओसामा और ओबामा क्या नाम से भाई जैसे नहीं लगते, और क्या ओसामा गब्बर सिंह का अवतार तो नहीं था ,,,जहाँ जाता वहीँ लोग दुबक जाते ,,,,क्या ओसामा मुस्लिम जगत का हीरो नहीं था ,,,और अमेरिका की चालें पूरा विश्व नहीं जानता,,,और आतंकवाद का खतरा सिर्फ अमेरिका को है ,,,या हिन्दुस्तान में होने वाला आतंक ,,,,और मारे जाने वाले कोई कीड़े मकोड़े हैं ,,,जिनकी परवाह अमेरिका को नहीं है,,,सिर्फ दो शब्द ""दुर्भाग्यपूर्ण घटना"" ,,,,या हिंदुस्तान अपने में सक्षम नहीं है आतंकवाद से निपटने के लिए ,,,या यहाँ की राजनीती इतनी बेबस है, कि जानते हुए आतंकियों के ठिकाने कहाँ हैं, क्यों इन्तजार किया जा रहा है, किसी अमेरिकी इशारे का , ,,,,,अमेरिका पाकिस्तान को बताना भी उचित नहीं समझता और पाकिस्तान में आतंकी ठिकानो पर हमला कर देता है ,,,,,,अमेरिका की चिंता यदि आतंकवाद होती तो सीमान्त पाकिस्तान पर स्थित सभी आतंकी ठिकाने भी नष्ट किये जाते ,,,लेकिन उसे अपनी नाक की मक्खी हटानी थी ,सो हट गई ,,,,सद्दाम हुसैन तो गिरफ्त में था, उसके साथ ऐसा क्यों किया गया ,,,सुनियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत उस पर एकतरफा मुकदमा चलाया गया ,,,और खुद जज द्वारा ही जिरह की गई,,,,,,,,अमेरिका की चालाकी खुद अपने को दूर रखा और जो चाहा वही करवा दिया ,,,,,,सद्दाम हुसैन को अपील के लिए तीस दिन का समय था लेकिन तीसरे दिन फांसी पर टांग दिया ,,,,,,,,,,अमेरिका सिर्फ अपने माने हुए शत्रुओं को आतंकी कहता है ,,,,,,,लेकिन सारे आतंकी उसकी दृष्टि में आतंकी नहीं है, या ओसामा को दुबारा चुनाव लड़ने के लिए एक मुद्दा चाहिए था जो निकट है ,,,,,,,,,हम सोच सकते हैं ,अमेरिका जमीन पर प्रति वर्गमीटर की जानकारी रखने में सक्षम है ,क्या उसे नहीं मालूम था, कि ओसामा कहाँ है,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,यदि वास्तव में अमेरिका चाहता है ,दुनिया में आतंक न हो उसे पाकिस्तान के उन हिस्सों को भी नष्ट कर देना चाहिए जहाँ हिंदुस्तान के खिलाफ आतंक की फैक्ट्रियां उत्पादन में उन आठ और दस साल के बच्चों को भी तैयार कर रही हैं ,,,,ओसामा के जाने से हमें किसी खुशफहमी में रहने की जरुरत नहीं होनी चाहिए ,,,जब तक सीमा पार वह ठिकाने नष्ट नहीं हो जाते ,,,,,,,,

सुवर्णा,,,,,,,,,,,,



बहुत पुरानी बात है ,,,सुवर्णा नाम की बहुत सुन्दर वेश्या थी, उसकी सुन्दरता पर कई राजा महाराजा मोहित थे ,,,उनका हुक्म वहां न चलता था ,,,,बल्कि वह उस सुवर्णा को प्रसन्न करने का नित्य प्रयास करते ,,,,सुवर्णा ,,,,के नित्य कई धनी कुबेर राजा हाजिर रहते ,,,,,और सुवर्णा थी सुन्दर और उसके नखरे वह किसी को रात को चुनले तो वह अपने को दुनिया का बादशाह समझ लेता था ,,,,अथाह दौलत लुटाते थे उस पर ,,,,,,,
,,,,,,,
एक दिन सुवर्णा ने, ,,,,अपनी खिड़की से देखा कि एक आकर्षक नवयुवक सन्यासी उसके द्वार खड़ा होकर भिक्षा के लिए पुकार रहा है ,,,,सुवर्णा ने उसे देखा और उस पर मोहित हो गई ,,,,,,वह खुद दौड़ कर नीचे आई और उस सन्यासी से कहा आप क्या चाहते हो ,,,,,,,,,,
देवी भिक्षा ,,,,,,
हम तुम्हें यह अपना सारा महल देते हैं आप यहीं रहो,
देवी ,यह प्रासाद हम क्या करेंगे हमें तो बस दो रोटी यदि भिक्षा में दे सको तो हमारी क्षुधा के लिए पर्याप्त है
सुवर्णा आसक्त हो चुकी थी ,,,आप जानते हैं हम पर कई राजा महाराजा मोहित हैं ,,,लेकिन हम आप से प्रेम करने लगे हैं ,,,हम आपसे निवेदन करते हैं ,,,आप हमारे साथ रहें,और ऐसे कहाँ कहाँ रोज दर दर भटकोगे ,रोज रोज भिक्षा मांगोगे ,,,मैं वचन देती हूँ ,तुम्हें कोई कष्ट न होने पायेगा ,,,मानो हमारी बात हम आप से सच्चा प्रेम करते हैं
,,,,
युवक सन्यासी हंसने लगा और उसने कहा ,,,,,,,,,,देवी हम कहाँ भटक रहे हैं ,,हम तो विचरण करते हैं ,,,,और हमें तो सदा आनंद है ,,हमें कष्ट कहाँ है ,,,और देवी जिस दिन भिक्षा नहीं मिलती उस दिन भी आनंदित रहते हैं ,,,,प्रभु और याद आते हैं ,,,और आनंद बढता है ,,,,,,और आप हमें प्रेम करती है, हम भी करते हैं ,लेकिन देवी जब हमें पुकारोगी जब इन प्रेमियों के प्रेम में कमी पाओगी तो हमें याद करना हम जरुर आएंगे ,,,और हम तो पूरे जगत से प्रेम करते हैं, तुम भी जगत में ही हो ,,,,अब हम चलते हैं जब भी अपने को अकेला और लाचार पाओ हमें याद करना हम जरुर आयेंगे
यह कह युवक सन्यासी वहां से भिक्षा ले चल दिया
,,,,,
दिन बीतते गए, सुवर्णा अपने भोगविलास में लीन उस युवक को भूल गई ,,,,,और एक दिन सुवर्णा ने देखा उसके शरीर के अंग पर एक दाग है ,उसने वैद्य को बुलवाया ,और वैद्य ने उसे कोड बता दिया ,,,,,सुवर्णा ,चिंतित हो गई ,उसने वैद्य से चिकित्सा शुरू करवा दी लेकिन धीरे धीरे रोग बढता गया ,,घाव  रिसने लगे ,और यह खबर भी उसके चाहने वालों में फैलती गई ,,,चिकत्सा में धन भी खर्च होता गया ,,,,लोगों ने आना छोड़ दिया ,,,,घर के नौकर भी घर छोड़ चले गए ,,,,,,,,,,,,अब शरीर गलता जा रहा था ,अकेलापन बढता जा रहा था ,,,,भरी दोपहर थी उसे प्यास लगी थी,और पानी देने वाला कोई न था उसकी स्मृति में युवक सन्यासी की बात याद आ गई ,,उसने कहा था ,कि जब पुकारोगी आ जाऊँगा ,,,एक आह भरी और याद किया ,,,,,,,इतने में आहट हुई किसी ने पुकारा ,,उससे उठा न गया ,,,,,वहीँ से पुकारा चले आओ द्वार खुला है ,,जहाँ द्वार पर दरबान रहा करते थे वहां कोई द्वार खोलने वाला भी नहीं था
सुवर्णा ,हैरान हो गई ,,वही युवक सन्यासी हाथ में खप्पर [ भिक्षा पात्र ] में पानी लिए उसकी और आ रहा है ,,,,,,,,
सन्यासी अब युवा तो न था ,,लेकिन परिपक्व था ,,,उसने सुवर्णा को जल पिलाया ,,,सुवर्णा की नेत्रों से जलधार फूट रही थी ,,सन्यासी ने उसके घावों को को औषधि से साफ कर धोया और उसे भोजन बना कर दिया,,,,
सुवर्णा ने सन्यासी से कहा ऐसे में जब मेरे पास कुछ नहीं है, आप को मैं क्या दे सकती हूँ
देवी ,तुमने कहा था कि मुझसे प्रेम करती हो शायद वह आकर्षण देह का था ,किन्तु मैं सिर्फ प्रेम करता हूँ मुझे सबसे प्रेम है ,और आज तुम कष्ट में हो तो मैं तुम्हारे पास हूँ ,,,,,और एक दिन तुम्हारी भिक्षा से मेरी क्षुधा शांत हुई थी तो मेरा भी दायित्व है कि मैं उरिन हो जाऊं अतः अब मुझे सेवा करने दें
कहते हैं, सन्यासी की सेवा से उसके बाकि जीवन के कष्ट कम हो गए ,,,और कुछ साल बाद उसकी मृत्यु हो गई ,,,और सन्यासी फिर से अपनी कन्दरा में चला गया ,,

ये शिष्टाचार है

अरे ,ये बताओ
ये कौन सा अचार है
आम ,नीम्बू मिर्ची और
अदरक का भी सुना है
मगर ये क्या है ,जब
पूछा एक फैशन परस्त
युवा बाला से
नहीं जानती वो
शिष्टाचार क्या है

सूट के ऊपर टाई
बालों में सजा गजरा
सुहागन की मांग सिंदूर
पति पास हो या कुछ दूर
ये सब जरुरी नहीं
किन्तु ये शिष्टाचार है

कुर्ते पर कलफ
मूंछो पर ताव
बड़े को नमस्ते
बड़ा सा घूँघट
जरुरी नहीं मगर
ये शिष्टाचार है

रविवार, 5 जून 2011

पड़ोसन ,...

पड़ोसन ,...
भाभी जी ,कहाँ हो
अरे ,कितने दिन से
सोच रही हूँ ,आपसे नहीं मिली
क्या करूँ ,मेरी सास
ठीक ,दरवाजे पर बैठी होती है
कहीं जाओ ,वही सवाल
कहाँ जाती हो
अभी अस्पताल गयी है
तब आई हूँ
अच्छा ,भाभीजी आपकी सास
नजर नहीं आ रही
अच्छा,हाँ वो सर्दियों में
दिल्ली चली जाती हैं

यहाँ उफ़ ,मत पूछो
जेठ जेठानी दोनों नौकरी वाले
कभी उनके पास भी जाना चाहिए
सास मगर नहीं जाती
और कहती है
यहीं रहूंगी गंगा माई के पास
पता नहीं क्या रखा है
गंगा माई में ,लोग भी
तो रहते हैं बाहर
पिछले साल गई थी
अपने भाई के घर
इनके छोटे मामा की शादी में
यहाँ से एक महीने में
दो बार गंगाजल दस दस लीटर
भिजवाया था वो भी कोरियर से

ओहो ,मैं भी क्या कह रही हूँ
सवेरे से, पहले ननद को
चाय बना कर दी
ट्यूशन ,जाती है चाय पीकर
फिर ,सास को चाय दी
फिर देवर को नाश्ता
हाय ,सवेरे से कमर
टूट जाती है
अरे भूल गई, भाभी जी,
अपनी वो साडी देदो फिरोजी वाली
बेटी का फैंसी ड्रेस शो है
मेरी सभी साड़ियाँ
अभी ड्राई क्लीन कराई हैं

अच्छा ,अन्दर कौन है
भाई साहब हैं,.. अभी गए नहीं
और देखो मैं भी पागलों की तरह
क्या क्या बोल गई
सुना तो, नहीं होगा
भाई साहब ने
कहीं, भाई साहब इनसे न कह दें
हाय राम, मुझे पता नहीं चला
इनको पता चला तो
यह तो अपनी माँ की
जरा सी बात सुन नहीं पाते
मेरा जीना हराम कर देंगे
अच्छा ,भाभी जी चलती हूँ
सास ,आ गयी होगी अस्पताल से
और साडी,, बेटी को भेजूंगी
उसे ही दे देना

गाँव शहर बन गया


मेरा छोटा सा क़स्बा
बन गया है, अब शहर
घराट ,जहाँ पिसता था
मेरी माँ के हाथ से छाना
और धुला गेंहूँ
अब वहां ,सुलभ शौचालय है

मस्तराम हलवाई अब
माला पहने दीवार में टंगा है
काले से शीशे के पीछे
मैं उसे पहचान लेता हूँ
अब थालियों में नहीं है
कलाकंद ,इमरती,रबडी
और न घेवर जलेबी
कोई भट्ठी नहीं है
हाँ अब है ,,मोमो
थोपो नुडल पिजा बर्गर

शहर की नालियाँ खुश हैं
अपनी अमीरी से, और
ढेर कूड़े का भी प्रफ्फुल्लित है
सैर करता है ट्रेक्टर में
शीतल हवा जो बहती थी
आज लोग रुमाल से
मुहं ढक के चलते हैं
हवा अब भी बहती है
मगर ,जहरीली है
 
गंगा में रोज नहाने वाले
अब गंगा का आचमन से
डरते हैं ,हाइजीनिक हैं
गंगा गन्दी हो गई
माँ बूड़ी हो गई
लोग दोनों से कतराते हैं
और सरकार कहती है
गाँव शहर बन गया

उभान यशपाल

आकाश, छोटा नहीं होगा

चीटियों की आँख से भी
आकाश, छोटा नहीं होगा
आदमी कितना बड़ा हो
महलों में हों भरी तिजोरियां
नाम तो चंद,एक या दो
हद से हद ,तीन लफ्ज का ही होगा न
बड़ा नाम रखने से
आदमी बड़ा नहीं होगा
छोटा ही सही नाम तेरा
तेरे काम से ही होगा

बेशुमार है दौलत
कितनी, तू रोटी खाता है
तेरी रोटी बेबस है
जो उतरती है तेरे हलक से
उसके स्वाद की
तू दाद, नहीं दे पाता है
हाँ तेरी उँगलियों को
जुबान मिल गई है
स्वाद चखने की
गिनता है जब तू करेंसी
उँगलियाँ चाट कर
थूक लगाता है
बड़े चटकारे लगाता है ,,,,,,,,,

शनिवार, 4 जून 2011

मैं सपने बेचता हूँ,,,,,,,,,,,


मैं सपने बेचता हूँ,,,,,,,,,,,
तेरे लिए कुछ दुआएं हैं मेरे पास
तू जब सोये तो सपनों में देखे
जो दिन में तू कभी पा ना सका
और सब कुछ पा जाये सपनों में
बस अब मैं कुछ सपने बेचता हूँ
.........
मैं सपने बेचता हूँ,,,,,,,,,,,
सपने रंगीन हैं ,हसीन हैं
कंजूसी मत करना देखने में
कोई कीमत नहीं अदा करना
हंसना नाचना और गाना बस
.............
मैं सपने बेचता हूँ,,,,,,,,,,,
माँ,ना दे सकी जो खिलौना
ढूंढ़ लेना मिल जायेगा जरुर
परवाह मत करना कि तू वहां
सुल्तान से कम नहीं है ,,,

बिकते हैं फूल, कांटे नहीं बिकते

खारों को मुझे देदो
मैं तैयार हूँ लेने को ,,,
इन्होने चुराई है खुशबु  फूलों से  ,,,,
मंदिर तो नहीं गए
और न किसी की मौत का
इन्हें कभी कोई मलाल
मुर्दे पर फूल ही
रोते हुए गए देखे गए

इन्हें कोई तहजीब नहीं
कभी मंदिर न मस्जिद
न गुरुद्वारे ही जाते
मुस्कुराना कभी न आया इन्हें
फूलों से की दोस्ती
पर, न गम में किसी के
फूलों के जैसे मुरझाये

अब जब सोचता हूँ ,
इन खारों ने क्या
कभी कुछ न किया
कोई मसल न दे डाल पर ही फूलों को
क्या उन्हें रोकते नहीं
और चुभ गए किसी को
फिर भी ,क्या
कांटे से कांटा ही निकलता नहीं

ये मजबूर हैं कांटे हैं
ये खुद कभी चुभेंगे, ऐसा नहीं
मत जाओ न इनके पास
न चुराओ कोई फूल डाली से
ये चौकीदार हैं ये जानते हैं
अपना काम,,इन्हें कोई
रिश्वत से न खरीदोगे
बिकते हैं फूल, कांटे नहीं बिकते
इनके दाम कोई लगाता नहीं
इनका हुस्न किसी को भाता नहीं
ये ईमानदारी की औलाद हैं
बेईमानो की आँख में चुभते हैं










पति प्यारा है, पर,,,

पत्नियाँ पति के
सामने नहीं हंसती
हाँ ,,वैसे खुल के हंसती हैं
क्या राज है
मैं भी खोज रहा हूँ
पति शायद
इस चिंता में
कि, कैसे करे प्रसन्न
कुछ न कुछ
जिन्दगी भर ढोता है
घर तो पत्नी को
पति की जेब से चलाना है
जिस दिन पत्नी हंस देती है
उस दिन पति
जरुरी सामान का थैला
भूल जाता है
फिर हंसती तो वो हैं
औरों के सामने
घर का राशन
औरों ने तो नहीं लाना है
पति प्यारा है, पर
घर कुछ डर और कुछ
प्यार से चलता है

शुक्रवार, 3 जून 2011

आदमी,,,,2935

आज दो हजार नौ सौ पैंतीस है
अभी अभी मुझे लैब में
तैयार किया गया है
अभी मेरी फिनिशिंग नहीं हुई है
मेरे पार्ट्स सिक्योरिटी सिस्टम ने
...चेक नहीं किये हैं ,भूल चूक
और मेरे सर में कोई वाइरस आ चुका है
यह वाइरस लगता है
२०१२ में समाप्त दुनिया का है
इसमें कुछ पुरानी मेमोरी
रीलोड हो गई है
मेरा ऑटो सर्च सिस्टम कहता है
शायद वह एशिया का है
जहाँ मैं हूँ, यह मंदिर एरिया है
इसके साथ कुछ अजायब घर है
जिसमें कुछ पुरानी एंटिक
वस्तुएं सजी हैं
मैं अपने सिस्टम को
अपग्रेड कर अपनी लोकेशन
लोकेट करता हूँ
यहाँ नयी दुनिया में
चल रही रिसर्च के मुताबिक
अभी तक मिले फॉसिल लगभग
आठ से ग्यारह सौ साल पुराने हैं
मेरे सिस्टम के वाइरस से
यह जानकारी मेरे वर्किंग ब्रेन में
ट्रांसफर कर दी है
मगर मैं खामोश हूँ
इन्हें अभी पता नहीं है
जहाँ मैं खड़ा हूँ इसके आस पास
मस्जिद एरिया भी है
यह सब लोग बिना परहेज
कहीं भी आ जा रहे हैं
मुझे मालूम है
कि दोनों में से एक ही
चुनना जरुरी है
क्या करूँ ,धर्म संकट है
किससे मदद लूँ
अरे अल्लाह ,भगवान्
कहाँ हो बताओ इनको
यह लोग अभी नहीं जानते
बताना भी जरुरी है
इनका इमान, इनका धरम
भ्रष्ट हो जायेगा
जब उन्हें[अल्लाह भगवान] परवाह नहीं
तो मैं क्यों करूँ
जब भेद नहीं होगा
जब आपस में नहीं लड़ेंगे
दुखी नहीं होंगे
तो ऊपर वालों कौन
याद करेगा तुम्हे
मुझे क्या तुम्हारा काम है
जैसी तुम्हारी मर्जी

गाय माता है

गाय के सींग हैं, मगर
उससे कोई डर नहीं
गाय माता है
माँ, से कोई क्यों डरे
दूध से पलता रहा
बचपन जवानी
और बुढ़ापा
खाती रही घास, और
घर का बचा हुआ

दूध तो दूध है
उसके त्याज्य मूत्र
और गोबर में भी
हैं कई औषधि
तेरे पूजा जप पाठ
अधूरे हैं बिन गोमूत्र
जिन्दा है ,तो भी उपयोगी
मर जाये फिर भी उपयोगी
तेरे पांव कांटा न लगे
अपनी खाल से
रखती है ख्याल
जूते, चप्पल या सैंडल
ढकती तेरे पांव
आखिर वो माँ है ,न

पर तू निपट स्वार्थी
छोड़ देता है उसे
सड़कों पर ,भूखा
भूख किसे नहीं लगती
प्लास्टिक में लिपटे
झूठे खाद्य पदार्थ खाती
और ,गाय को नहीं मालूम
तूने, प्लास्टिक में
उसकी मौत तैयार की
उसने तुझे जिन्दगी दी
तू दे रहा है मौत
किसी ने चलायी छुरी
उसके गले और किसी ने
प्लास्टिक खाने को दी
कौन है, कम अपराधी
मौत तो दोनों ने दी

फिर सुबह होगी

सदा कोई तुम्हारा साथ देदे
मुमकिन नहीं और
तुम भी जीते हो जिंदगी
अपने ढंग से ,
जियो ,,,खूब जियो
लेकिन दिन के उत्पात
और ,शतरंजी चालें
अब जाओ भूल
वक्त वक्त की बात है
अब रात है ,
फिर सुबह होगी
करो इंतजार
दिन में तुम्हारे साथ था
लेकिन अब अपने
एकांत से मिलाओ हाथ
बहुत थके हो .बस अब
अपने में खो जाओ
 

वक्त मत गवां

भूत की छांव को भूल जा ,
वर्तमान तेरे हाथ है
भविष्य ,
एक मोड़ के दूसरी तरफ
अनदेखा है, स्वप्न जैसा
अपनी हदें सिर्फ इस पार
यहीं जी,और देख
क्या तेरे सामने
निपट अभी और यहाँ
कैसा स्वप्न तू जी रहा
नींद से जाग ,बाहर आ
तेरे हाथ जो क्षण
उसे भरपूर जी
मुर्दा इतिहास और अनजान
भविष्य ,,,,,,सुधारने में
वक्त मत गवां
तू जी बस इसी पल
अभी और यहीं
जो तेरे हाथ है ,,,,,,,,

जहरीला होता इंसान

देश की देखी थी, सीमा
पर हवाओं को खुले में
बहते देखा ,बारिशों को
कहीं भी बरसते देखा
सीमा तो बाँधी इंसान ने
नदियाँ अब तक आजाद थी
उनको भी पलटते देखा
इंसानों की वहशियत
नदी जंगल पहाड़ भी
भुगत रहे,हरयाली गुम है
पांडू रोग से पीड़ित जंगल
हवाओं को छानते वृक्ष

हत्याओं के शिकार
दुबकता डर से शेर
इन्सान नाम के जानवर से
हाथी की विशालता बौनी
साँपों के जहर से अधिक
जहरीला होता इंसान
अपने को श्रेष्ठ कहता इंसान
जानवर हुआ इंसान

तुझे भी मुझसे प्यार है

खुद को तराशता हूँ मैं
जर्रा जर्रा कतरा` कतरा
छीलता जा रहा हूँ
प्याज के छिलकों की तरह
ये जिंदगी भी ,रहस्य है
छिलकों की जैसी
मगर ,उधडती हुई
कहाँ जा रही है

तेरे कब काम आऊंगा
कब तेरा विशवास पाऊंगा
लोगों ने बहकाया मतकर
विशवास ,छला जाएगा
नहीं फिकर मुझे
"विष" में "वास" करने में भी
नहीं डर कोई,विश्वास करता हूँ
फैंक चूका हूँ ,समंदर में खुद को
अब क्या होगा डूब जाऊँगा
या किनारा पा जाऊँगा
डूब कर तुझमें मिटाकर खुद को
तुझे पा जाऊँगा ,वैसे भी मुझे
अब किनारों से ज्यादा
तेरी लहरों में डोलना
स्वीकार है, तू कुछ भी कर
तुझे भी मुझसे प्यार है
मुझे विश्वास है
यही मेरा प्यार है
और तू भी है,,मेरा
यह तुझे भी विश्वास है

तू ,हो नहो ,हाँ तू,,, "ईमान" है

तेरे कदम क्यों
लड़खड़ाते हैं
क्या नजदीक कोई
मैखाना है ,और तू
शराबी भी नही
फिर बहकता क्यूँ है
तू कौन है, कहाँ रहता है ,
अपना परिचय तो बता
तेरा कोई घर है
घर में बच्चे हैं ,बीबी है
बूढ़े माँ और बाप हैं
बीमार हैं ,तू लाचार है
कुछ तो बता

तेरी बेटी की शादी है
बीबी ने मांगी है पाजेब
चांदी की ,जो महंगी है
तू bpl है apl है या कुछ और
तेरी समस्या क्या है
कुछ तो बता कौन है तू
भाई ,तू नहीं बोलेगा
मैं तुझे जानूंगा कैसे
तेरी हरकतें कुछ ठीक
पहचान नहीं पाता हूँ
ओह ' अच्छा तू है
तू अभी तक जिन्दा है
जा छिप जा कहीं
सब खोज रहे हैं तुझे
अजायब घर से भागा है
मैंने पहचान लिया है, तुझको
तू ,हो नहो ,हाँ तू,,, "ईमान" है

सपनो में भी जागता हूँ

प्रिय, तुम कहाँ हो
तुमने किया था, वादा
सपनो में आने का
तुम, आया करो
मैं तुम्हारे इंतजार में
सपनो में भी जागता हूँ
पूरी रात बीत जाती है
और, तुम हो
कि आती ही नहीं

क्या प्रेम में मिलन
गैर क़ानूनी हैं
असंवैधानिक हैं, सपने
तुम जानती होगी
तुम्हारे देश का शायद
कानून ऐसा हो
छोडो चलो
तो तुम सो जाओ
तुम नहीं आती
मैं ही आता हूँ
आँखें बंद करो
धीरे से मैं ही आता हूँ
तुम्हारे सपनों में
मगर यह क्या तुम तो
सोती ही नहीं, मैं कैसे आऊं
जरा सी आँख बंद करती
मैं आता हूँ
जैसे ही तुम्हारे सपनो में
करता हूँ प्रवेश
तुम उठ जाती हो आंसू गिराते हुए
तुम भर नींद सोया करो
मेरे साथ सपनो में ही सही
दो पल बिताया करो
और, देखो जब सपनो में आता हूँ
अचानक मत उठ जाया करो
और बहा देती हो जो आँखों से आंसू
साथ उनके हमें ना गिराया करो

मंजिल करीब है

सुबह उजाले थे खड़े
इस इंतजार में
तू कदम बड़ा
सूरज भी लाया प्रकाश
तेरे साथ न हो कारवां
बिना फिकर, तू कदम उठा
आगे बढ़ ,क्यों देर
तेरे हौंसले हैं बुलंद
तो मंजिल कहाँ दूर
बहने दे हवाओं को
बन कर आंधी
ये तूफान,
कुछ कर न पायेंगे

भले ही विशाल हो
कितना भी सागर
तेरी छोटी हो नाव
डाल दे सागर में
तेरे इरादों की पतवार
सागरों को बौना कर देंगी

तू खोज मुसीबतें
निपट और आगे बढ़
मुहँ छिपाना तेरा काम नहीं
देख ,इससे पहले
सूरज तपे ,दुनिया चले
तू चल ,और सिर्फ चल
तेरे चलने से
मंजिल करीब है

माँ!!!!!!प्रणाम !!!

माँ!!!!!!प्रणाम !!!
जो औलाद के लिए
सब कुछ करे न्योछावर ,
उस माँ को प्रणाम
माँ सिर्फ माँ है
माँ का विकल्प भी माँ है
जो भूल चुके हैं, माँ के उपकार
जरा आज कुछ देर
एकांत में याद करो
माँ क्या होती है
क्या उसे याद करते ही
तुम्हारे दिल में
कुछ पिघलता है
यदि नहीं तो अभागे हो
तुमने माँ नहीं देखी

याद करो माँ, और बचपन
जब दौड़ते ही गिर जाते थे
तड़पने वाला दिल किसका था
जब सर्द हवाओं से
तुम्हारी नाक बहती थी
नई साड़ी ,या दुपट्टे से
बिना सोचे ,पौंच देती थी
तुम गोद को उसकी
करते थे गन्दा
वह मुस्कुराती थी
माथे पे सिकुडन न लाती थी
तुम्हारी नींदों की खातिर
रात को जगती थी
और बाप के कुछ भी हों
उपकार तुम पर
तुम्हे लाने को संसार में
प्रसव पीड़ा माँ ने झेली थी

देख यहाँ इंसान रहते हैं

तेरी अँग्रेजियत
अटकी है टाई में
एटिकेट मेनर
गुड फ़ाइन हाय या बाय में
तेरी उजली कमीज़
चमकदार सूट बूट
तेरी चिंता पेंट की क्रीज़
या जूते की चमक

आ कभी देख ज़रा
मेरे गाँव में
तू पहुँच कहीं भी
तेरा परिचय ना माँगेगे
तेरे पाँव धोएंगे
अपनी सूखी रोटी और छाछ
बाँट कर तुझे दे देंगे
और जैसे ही तेरे गले से
उतरेगी रोटी और छाछ
वह अपना गला तर कर लेंगे

तू समझता है अगर
गाँव में कुछ गँवार रहते हैं
भूल रहा है तू
देख यहाँ इंसान रहते हैं
मैले हों भले ही वस्त्र पर
दिल से साफ रहते हैं
जिनके दम पर नाज़ है
वह किसान गाँव में रहते हैं

ये तकलीफें बेचारी कहाँ जाएँगी,,

जब भी तुम चाहो
तुम आ जाओ
मेरे घर न चौखट है न दरवाजे
इस घर में तकलीफ भी
रहती है ,बड़ी खुश होकर
और हम भी उसे अब
अपने घर का मान चुके हैं

कुछ दिन पहले, एक साजिश
करते थे, चौराहे पर, कुछ लोग
सबकी तकलीफें, दूर कर देंगे
कैसे कर सकते हैं ,वह ऐसा कुछ
हमारी तकलीफ से क्यों चिड़ते हैं
उन्हें हमारी कोई चीज
ख़राब क्यों लगती है
उसे हटाना क्यों चाहते हैं
ये तकलीफें बेचारी कहाँ जाएँगी
कहाँ रहेंगी,, हमारे घर
चैन से रहती हैं

कितना साथ देती है हमारा
जब रसोई में केरोसिन का
डिब्बा खाली हो जाता हो
या आटे का थैला
बच्चे का मास्टर
ट्यूशन देर तक
पढाता है जिस दिन
मकान मालिक
मुस्कुरा कर देखता है
जिस दिन, हाँ उस दिन भी
जब आ रही हों
खुशियाँ मेरे घर नखरे से
तुम फिर भी मुस्कुराती हो
अब तुम भी आ जाओ भगवान
तुम उसके साथी हो
हो सकता है मेरे घर चौंक जाएँ सब
और पूछें तुमसे ,,,,,
,""क्या तू ही भगवान है "

इतना जान लो

तुम मुस्कुराओ
कलियों को सिखा दो
खिलना
बहारों को लजाने दो
तुम बस
स्वांस लो इस बाग को
महकना सिखा दो
मेरा ख्याल न करो पर
ख्याल रखो तुम अब सिर्फ
तुम्हारी ही नहीं हो
इतना जान लो

तू कौन सी सेना में है,,,

भगवान जा ,
कहीं और किसी बस्ती में
यहाँ तेरा कोई काम नहीं
अभी, यहाँ सभी गरीब रहते हैं
सुना है ,जब कोई पापी
पैदा होता है ,धरती पर
तू जन्म लेता है
जा, वहीँ जा ,जहाँ
तेरी जरुरत हो
यहाँ कोई शैतान नहीं
वक्त बदल गया, तो
बदल जायेगा तू भी
तू भी फैशन का
दीवाना है
 तू देख न ,यहाँ तो
हम बाँट के खाते हैं

यहाँ क्यों आया है
क्या कंस का अवतार हुआ है
या किसी रावण का हुआ है
अभिषेक और तू किसके घर
हुआ है पैदा ,क्या अब तू
फिर सुदर्शन लायेगा
या कंधे पर लटके होंगे
धनुष बाण ,या अब हाथ में
तेरे कलम होगी
पेंट शर्ट में होगा
या आएगा जींस में

पर ,तू खादी में मत आना
बड़ी कन्फ्यूज करती है
पता ही नहीं चलता
तू कौन सी सेना में है
राम की या रावण की
पर इतना तो तय है
जिस दिन सच में रावण
गिरेगा धरती पर
दशहरा अपनी बस्ती में
पहली बार जरुर
मिल कर मनाएंगे

ये धुआं ,,,

उसे प्यार आता था भरपूर ,वह उसे होठों से लगा लेता
भर लेता था अपने सीने में होठों से, वह भी मिट जाती
दीवानी थी,बेपनाह वह भी ,उसके होठों की दीवानी थी
लोगों ने समझाया इतनी मुहब्बत वाजिब नहीं ,छोड़ दे
हर बार मुस्कुराया और कहा,क्या करूँ जान को छोड़ दूँ
यह भी तो करती है मुहब्बत मुझसे इसे में कैसे छोड़ दूँ
कोई साजिश काम न आई ,कानून भी रह गया देखता
लिखवा दिया माथे पर उसके सावधान यह खतरनाक है
इससे कैंसर का खतरा है जो जान ले लेता है, मगर दोस्त
यहाँ कौन बचा है सभी मरते हैं मिटते हैं मुहब्बत में
अब इन दीवानों को कौन समझा सकता है जो तैयार हैं
मरने को मिटने को, सिगरेट के धुंए में उड़ाते जिन्दगी