चिट्ठी लिखी हुई
किसी और की है
भाषा कुछ तल्ख़ हो
प्रेम भरी, या नरम,गरम
गुस्ताखियाँ ज़माने की हैं
डाकिये को दोष न दो
बिना परहेज चला जाता हूँ
कई बस्तियों में
सुनता हूँ कह देता हूँ
वही बात ,उनकी जुबान से
मैं तो बस डाकिया हूँ
पहुंचा देता हूँ
चिट्ठिया मुझे दोष न दो
बंद लिफाफे में होता है क्या
सुख दुःख ,या कुछ और
कथा है व्यथा नहीं जानता
मेरी अपनी कोई बात नहीं
मेरा धर्म है चिट्ठी बाँटना
बाँट देता हूँ ,पढो जो लिखा
ख़ुशी है इनाम मत दो
ग़मी है तो इल्जाम भी न दो
किसी और की है
भाषा कुछ तल्ख़ हो
प्रेम भरी, या नरम,गरम
गुस्ताखियाँ ज़माने की हैं
डाकिये को दोष न दो
बिना परहेज चला जाता हूँ
कई बस्तियों में
सुनता हूँ कह देता हूँ
वही बात ,उनकी जुबान से
मैं तो बस डाकिया हूँ
पहुंचा देता हूँ
चिट्ठिया मुझे दोष न दो
बंद लिफाफे में होता है क्या
सुख दुःख ,या कुछ और
कथा है व्यथा नहीं जानता
मेरी अपनी कोई बात नहीं
मेरा धर्म है चिट्ठी बाँटना
बाँट देता हूँ ,पढो जो लिखा
ख़ुशी है इनाम मत दो
ग़मी है तो इल्जाम भी न दो
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